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पढने में मन क्यों नही लगता है ?
प्रतियोगी परीक्षाओ की तैयारी करने वाले प्रतियोगियों की सबसे आम समस्या है , पढने में मन न लगना . इसका सबसे बड़ा कारण है एकाग्रता की कमी . अमेरिकी मनोवैज्ञानिक अर्नेस्ट वुड अपनी पुस्तक " Concentration " में एकाग्रता के बारे में बहुत शोधपूर्ण विचार व्यक्त किये है . लेकिन हम उस पुस्तक के उन अंशो की चर्चा करेंगे जो परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है .अर्नेस्ट वुड ने एकाग्रता के पांच शत्रु बताये है .
आलस्य - एकाग्रता का सबसे बड़ा शत्रु आलस्य होता है . आलस्य से इन्द्रियों की क्षमता कम होती है , ये मन या दिमाग की सजगता को कम कर देता है . और मन में उत्साह की कमी के कारण हताशा का भाव उत्पन्न होने लगता है .
निरर्थक बोलना - एकाग्रता का दूसरा शत्रु निरर्थक बोलना है . यदि हम इस बात पर ध्यान दे कि हम दिन भर क्या रहे है , तो जानेंगे कि हमारी अधिकतर बातें उद्देश्यहीन होती है . फ़िल्मी चर्चा, गपशप और पर निंदा आदि इसी श्रेणी में आती है . इससे ऊर्जा तो बर्बाद होती है ही , साथ ही एकाग्रता करना मुश्किल हो जाता है .
निरर्थक विचार - हम बाहर बोलना भी बंद करदे लेकिन मन में निरर्थक चलते है , वह तो और भी घातक है . विचार सीधे मन पर ही प्रभाव डालते है. निरुद्देश्य विचार एकाग्रता को पूरी तरह नष्ट कर देते है . घर बैठ कर टी वी देखना . कंप्यूटर/ मोबाइल पर गेम्स खेलना , सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर समय बिताना , फ़िल्मी गाने सुनना भी निरर्थक विचारो को बढ़ावा देते है .
निरर्थक क्रिया - एकाग्रता का चौथा शत्रु है , निरर्थक क्रिया . हमारी आदतों में कई ऐसी निरर्थक बातें आ जाती है , जिनका कोई अर्थ या उपयोग नही होता है . जैसे - बार- बार बालों पर हाथ फेरना, गर्दन हिलाना , हाथ या पैर हिलाना , बार-बार कपड़ो को सही करना आदि . इन क्रियाओ का कोई उद्देश्य या उपयोग नही है . इन क्रियाओ से ऊर्जा का व्यर्थ अपव्यय होने के साथ ही मन को भी ये अश्थित कर देती है .इन आदतों को स्वयं के निरिक्षण से या मित्रो के सहयोग से पहचान कर इनसे मुक्ति पा सकते है .अगर मित्र हमें टोकने लगेुछ समय में ही इनसे हम मुक्त हो सकते है .
लोभ या ईर्ष्या - मन में जब प्राप्ति की तीव्र इच्छा होती है , तब उसे लोभ कहते है , और जब किसी से जलन होने लगे तो उसे ईर्ष्या कहते है . दोनों मन के विकार है . ये सभी एकाग्रता में बाधा डालते है . वर्तमान में फैशन का आकर्षण भी मन में लोभ और ईर्ष्या का कारण बनता है मन भी अस्थिर होने लगता है .
आसक्ति या लगाव - एकाग्रता का अंतिम शत्रु है , आसक्ति या लगाव . अर्नेस्ट वुड कहते है कि इश्वर के अलावा अन्य किसी वास्तु या व्यक्ति में अत्यधिक लगाव भी एकाग्रता में बाधक होता है . आसक्ति से मन उस वास्तु या व्यक्ति में लगा रहता है . पढाई करते समय इन संकुचित विचारो का प्रवाह चलता रहता है . और मन कि एकाग्रता भंग हो जाती है .
यदि हम एकाग्रता के इन शत्रुओ को हरा कर सफल परीक्षार्थी बनना चाहते है , तो हमें अपने पुरे व्यक्तित्व को बदलने के लिए तैयार रहना होगा .
साभार - परीक्षा दे हँसते हँसते
( Dileep pathe )
आलस्य - एकाग्रता का सबसे बड़ा शत्रु आलस्य होता है . आलस्य से इन्द्रियों की क्षमता कम होती है , ये मन या दिमाग की सजगता को कम कर देता है . और मन में उत्साह की कमी के कारण हताशा का भाव उत्पन्न होने लगता है .
निरर्थक बोलना - एकाग्रता का दूसरा शत्रु निरर्थक बोलना है . यदि हम इस बात पर ध्यान दे कि हम दिन भर क्या रहे है , तो जानेंगे कि हमारी अधिकतर बातें उद्देश्यहीन होती है . फ़िल्मी चर्चा, गपशप और पर निंदा आदि इसी श्रेणी में आती है . इससे ऊर्जा तो बर्बाद होती है ही , साथ ही एकाग्रता करना मुश्किल हो जाता है .
निरर्थक विचार - हम बाहर बोलना भी बंद करदे लेकिन मन में निरर्थक चलते है , वह तो और भी घातक है . विचार सीधे मन पर ही प्रभाव डालते है. निरुद्देश्य विचार एकाग्रता को पूरी तरह नष्ट कर देते है . घर बैठ कर टी वी देखना . कंप्यूटर/ मोबाइल पर गेम्स खेलना , सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर समय बिताना , फ़िल्मी गाने सुनना भी निरर्थक विचारो को बढ़ावा देते है .
निरर्थक क्रिया - एकाग्रता का चौथा शत्रु है , निरर्थक क्रिया . हमारी आदतों में कई ऐसी निरर्थक बातें आ जाती है , जिनका कोई अर्थ या उपयोग नही होता है . जैसे - बार- बार बालों पर हाथ फेरना, गर्दन हिलाना , हाथ या पैर हिलाना , बार-बार कपड़ो को सही करना आदि . इन क्रियाओ का कोई उद्देश्य या उपयोग नही है . इन क्रियाओ से ऊर्जा का व्यर्थ अपव्यय होने के साथ ही मन को भी ये अश्थित कर देती है .इन आदतों को स्वयं के निरिक्षण से या मित्रो के सहयोग से पहचान कर इनसे मुक्ति पा सकते है .अगर मित्र हमें टोकने लगेुछ समय में ही इनसे हम मुक्त हो सकते है .
लोभ या ईर्ष्या - मन में जब प्राप्ति की तीव्र इच्छा होती है , तब उसे लोभ कहते है , और जब किसी से जलन होने लगे तो उसे ईर्ष्या कहते है . दोनों मन के विकार है . ये सभी एकाग्रता में बाधा डालते है . वर्तमान में फैशन का आकर्षण भी मन में लोभ और ईर्ष्या का कारण बनता है मन भी अस्थिर होने लगता है .
आसक्ति या लगाव - एकाग्रता का अंतिम शत्रु है , आसक्ति या लगाव . अर्नेस्ट वुड कहते है कि इश्वर के अलावा अन्य किसी वास्तु या व्यक्ति में अत्यधिक लगाव भी एकाग्रता में बाधक होता है . आसक्ति से मन उस वास्तु या व्यक्ति में लगा रहता है . पढाई करते समय इन संकुचित विचारो का प्रवाह चलता रहता है . और मन कि एकाग्रता भंग हो जाती है .
यदि हम एकाग्रता के इन शत्रुओ को हरा कर सफल परीक्षार्थी बनना चाहते है , तो हमें अपने पुरे व्यक्तित्व को बदलने के लिए तैयार रहना होगा .
साभार - परीक्षा दे हँसते हँसते
( Dileep pathe )
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